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सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चित् दु:खभाग भवेत् ।।  | 
      
      सभी सुखी होवें,  सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें, किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े  | 
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Swami Yogeshwaranand Ji Paramahans  | 
      
| अयन्तु परमो धर्मो यत् योगेनात्मदर्शनम् ।।१।। न योगात् परमपुण्यं न योगात्परं शिवम् । न योगात् परं शान्तिर्न योगात्परमंसुखम् ।।२।। ज्ञानं तु जन्मनैकेन योगादेव प्रजायते । तस्मात् योगात्परतरो नास्ति मार्गस्तु मोक्षद: ।।३।।  | 
    
योग के द्वारा आत्मदर्शन सबसे बड़ा धर्म है।  योग से बढ़कर न कोई पुण्य है, न कल्याणकारी वस्तु, न शान्ति और न कोई परम सुख है । योग के द्वारा तो एक जन्म में ही ज्ञान हो सकता है अतएव योग से बढ़कर मोक्षदायक अन्य कोई मार्ग नहीं है ।  | 
  
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